बुधवार, 3 सितंबर 2025

कविता: "बादलों की कहानी"

 "बादलों की कहानी"
बूंदा बाँदी सुरु हुई थी ,
कुछ खास नहीं पर बरस रही थी। 
छाए थे काले घनघोर बादल ,
चारो ओर अँधेरा ही था। 
हवा रुख ने बदल दिया ,
मौशम जब उमड़ी थी। 
उड़ा ले गए बादलो को ,
कही दूर जाके फेकि थी। 
रोशनी आ पहुंची धरती पर ,
जब सूरज चमका था। 
 बूंदा बाँदी सुरु हुई थी ,
कुछ खास नहीं पर बार्स रही थी। 
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11TH 
अपना घर। 

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