"बादलों की कहानी"
बूंदा बाँदी सुरु हुई थी ,
कुछ खास नहीं पर बरस रही थी।
छाए थे काले घनघोर बादल ,
चारो ओर अँधेरा ही था।
हवा रुख ने बदल दिया ,
मौशम जब उमड़ी थी।
उड़ा ले गए बादलो को ,
कही दूर जाके फेकि थी।
रोशनी आ पहुंची धरती पर ,
जब सूरज चमका था।
बूंदा बाँदी सुरु हुई थी ,
कुछ खास नहीं पर बार्स रही थी।
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11TH
अपना घर।
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