सोमवार, 8 सितंबर 2025

कविता: "खुश खेत, हैरान इंसान"

 "खुश खेत, हैरान इंसान" 
खामोश है यह मौशम आज ,
थोड़ा सा उमड़ रहा गरज रहा है। 
और सूरज हाँस रहा है। 
तो आ रही है धरती पर ,
लेकिन बारिश भी जमा रही उन पर ,
पहले जैसा गिला कर दिया है। 
गली और रास्ते भर दिया है। 
खेत खलियान तो खुश है इनसे ,
पर मनुष्य हैरान है। 
क्यूंकि उनको भी खेत में काम है।  
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th, 
अपना घर।  
 

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