गुरुवार, 11 सितंबर 2025

कविता: "सपनों को नया आकार"

 "सपनों को नया आकार"
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे से होगी कोशिश पूरी। 
जो सपने टूट चुके ,
अब उसे है सजाना। 
सूंदर सी उसको आकार देना। 
चहकती गौरैया सी मुस्कान देना। 
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे बढ़ना है कदम से कदम मिलाए।
गुस्सा के रहो में प्यार बढ़ते - बढ़ते। 
आगे बढ़ाना है हौसलो की चिंगारी जलाते  ,
अंधकार को दूर करते - करते। 
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे बढ़ना है कदम से कदम मिलाए।
कवि: अमित कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 


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