मंगलवार, 30 सितंबर 2025

कविता : "जब मुझे कुछ होता अहसास"

 "जब मुझे कुछ होता अहसास"
जब मुझे कुछ होता अहसास,
कुछ देर के लिए हो जाता उदास। 
फिर उस बात का लगता आस ,
उस दिन बैठे सोच रहा था खिड़की के पास। 
कभी वो सपनो में आती ,
कभी आकर जगा वो जाती।
क्या है ो कुछ समझ न आता ?
बार - बार याद उसी का आए ,
अच्छी यादो का कैसे भुलाए। 
जब मुझे कुछ होता अहसास ,
कुछ देर के लिए हो जाता उदास। 
कवि: बीरेंद्र कुमार, कक्षा: 4th,
अपना घर। 

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