"बहन की कमी"
मेरी एक बहन भी थी,
वो भी मुझे छोड़ गई।
न जाने क्यों मुझसे मुँह मोड़ गई ,
मैं न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ।
बहन से किया हुआ वादा टूट गया है,
न जाने क्यों वो टूट गई।
वो कहती थी भैया आप ही आएगा,
आप हर जगह मुझे ही पाएगा।
न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ।
क्या करे इस बीते लम्हे को जो ,
रोलता है तो कभी हसता है।
न जाने क्यों ये रिस्ता मुँह मोड़ लिया हैं ,
इस बड़े भाई का दिल तोड़ दिया हैं।
मैं न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ।
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
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