रविवार, 7 सितंबर 2025

कविता: "बहन की कमी"

 "बहन की कमी"
 मेरी एक बहन भी थी, 
वो भी मुझे छोड़ गई। 
न जाने क्यों मुझसे मुँह मोड़ गई ,
मैं न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
बहन से किया हुआ वादा टूट गया है,
न जाने क्यों वो टूट गई। 
वो कहती थी भैया आप ही आएगा,
आप हर जगह मुझे ही पाएगा। 
न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
क्या करे इस बीते लम्हे को जो ,
रोलता है तो कभी हसता है। 
न जाने क्यों ये रिस्ता मुँह मोड़ लिया हैं ,
इस बड़े भाई का दिल तोड़ दिया हैं। 
मैं न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
 अपना घर। 


कोई टिप्पणी नहीं: