"तेरे साथ"
क्या ये आसान होता की हम ,
आग पानी व् हवा को महसूस व जान पाते ?
गगन की उचाइयो ,
सगरो की गेहराई .
हम कैसे नाप पते ?
पृथ्वी की विशाल भुला को ,
एक नक्से में बदल पते ?
मेरे गात साथ।
गम शूम जहाँ में घनघोर रजनी की रंग में ,
टिमटिमाती , चमकती व चलती,
समारे की दुनिया को ,
किस तरह निहार पाते ,
अंतरिक्ष की चाँद चांदनी .
तारो - सितारों की छिपी किस्से,
कैसे हम सुन और बुझ पाते ,
जो तुम न होते आज ,
मेरे गात साथ।
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें