गुरुवार, 18 सितंबर 2025

कविता: "तेरे साथ"

 "तेरे साथ"
 क्या ये आसान होता की हम ,
आग पानी व् हवा को महसूस व जान पाते ?
गगन की उचाइयो ,
सगरो की गेहराई .
हम कैसे नाप पते ?
पृथ्वी की विशाल भुला को ,
एक नक्से में बदल पते ?
मेरे गात साथ। 
गम शूम जहाँ में घनघोर रजनी की रंग में ,
टिमटिमाती , चमकती व चलती, 
समारे की दुनिया को ,
किस तरह निहार पाते ,
अंतरिक्ष की चाँद चांदनी .
तारो - सितारों की छिपी किस्से,
 कैसे हम सुन और बुझ  पाते ,
जो तुम न होते आज ,
मेरे गात साथ। 
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर। 

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