"जिंदगी की तलाश में"
ये मौसम फीका - फीका सा हैं ,
ये दिन सूखे - सूखे से हैं।
सब लोग बेगाने से हैं ,
इन सब के बीच हम अनजाने है।
घर - बार छोड़कर इस अनजान सी हवेली में ,
आये है नई जिंदगी की तलश में ,
बन रहा है आगे भविष्य चलो चले हम पर्वत कैलाश में।
नये जिंदगी की आश में ,
निकल पड़े साथी की तलाश में।
आँखे में हमेश आँशु लेके ,
रहते है एक कोने में पड़े ,
एक पर्दे के पीछे छाया बनके ,
रहते है हमेश खड़े।
कवि: मंगल कुमार कक्षा: 9th
अपना घर।
2 टिप्पणियां:
चलो चले हम पर्वत कैलाश में , बहुत सुंदर
जी हाँ वहाँ का वातावरण बहुत अच्छा होता है।
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया।
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