शीर्षक :- नेता और महगाईं
महगाईं का दौर है भईया....
नेताओं का है जमाना,
घोटाले पर घोटाला करके....
भर रहें हैं ये खजाना,
इधर इस महगाईं से....
आम जनता इतनी तंग है,
आलू,बैगन,टमाटर,प्याज से....
छिड़ती आज उनकी जंग है,
पेट्रोल का बढ़ गया इतना दाम....
कहीं न लगता अब जाम,
कैसी है भाई ये नेता की चाल....
जिसने कर रखा सबको बेहाल,
महगाईं का दौर है भईया....
नेताओं का है जमाना,
घोटाले पर घोटाला करके....
भर रहें हैं ये खजाना,
इधर इस महगाईं से....
आम जनता इतनी तंग है,
आलू,बैगन,टमाटर,प्याज से....
छिड़ती आज उनकी जंग है,
पेट्रोल का बढ़ गया इतना दाम....
कहीं न लगता अब जाम,
कैसी है भाई ये नेता की चाल....
जिसने कर रखा सबको बेहाल,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
1 टिप्पणी:
नन्हीं कलम ने अपने आस-पास से रू-ब-रू होना सीख ही लिया...
समस्याओं से जूझता बचपन ....
सोच रहा हूँ....
क्या मौलिक आवश्यकताओं के अभाव बचपन की स्वभाविकता नष्ट कर देंगे?
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