शीर्षक :- वारिस
न होती रात न होते दिन....
होती सुहावनी सुबह,
होती सुहावनी शाम....
न होती गर्मियों की गर्मी,
न होती जड़ों की सर्दी....
होता केवल बादलों का घेरा,
न होता घन-घोर काला अँधेरा....
होती बादलों की रिमझिम बारिस,
तो हम होते प्रथ्वी के वारिस....
न होती रात न होते दिन....
होती सुहावनी सुबह,
होती सुहावनी शाम....
न होती गर्मियों की गर्मी,
न होती जड़ों की सर्दी....
होता केवल बादलों का घेरा,
न होता घन-घोर काला अँधेरा....
होती बादलों की रिमझिम बारिस,
तो हम होते प्रथ्वी के वारिस....
कवि : हंसराज कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें