शीर्षक :- गर्मी
कड़ाके की इस गर्मी में....
हो रहा सब हाल बेहाल,
पर्यावरण के प्रति मनुष्य के इस व्यव्हार से....
हो रहा है सूरज पीला,लाल ,
मनुष्य अपने लाभ के लिए....
इन बेजुबान पेड़ों को काट रहें है,
काट काट इन पेड़ों को....
मौत सभी को बाँट रहे है,
प्यारी सी इस अपनी धरती को....
क्यों कर रहे हरियाली से दूर,
खूब सारे पेड़ पौधों को लगाकर....
आनन्द हम लें इसका भरपूर,
कड़ाके की इस गर्मी में....
हो रहा सब हाल बेहाल,
पर्यावरण के प्रति मनुष्य के इस व्यव्हार से....
हो रहा है सूरज पीला,लाल ,
मनुष्य अपने लाभ के लिए....
इन बेजुबान पेड़ों को काट रहें है,
काट काट इन पेड़ों को....
मौत सभी को बाँट रहे है,
प्यारी सी इस अपनी धरती को....
क्यों कर रहे हरियाली से दूर,
खूब सारे पेड़ पौधों को लगाकर....
आनन्द हम लें इसका भरपूर,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
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