कविता :- आकाश
काश आज हमारा एक आकाश होता,केवल वह हमारे लिए ही आज होता....
काश हम उसकी उचाईयों को छू पाते,काश आज हम उस तक पहुँच पाते,
आकाश हमारे लिए और हम,आकाश के लिए होते....
तो आज के कलयुग में,बोझ हम न ढ़ोते,
आज के इस समय में,नन्हे-नन्हे हाथों से....
अब बोझ उठाया नहीं जाता,अब इन छोटे-छोटे बच्चों से,
इतना बड़ा ईंट बनाया नहीं जाता,काश आज हमारे पास आकाश होता....
ये नन्हा सा हाथ उसे छूने को आजाद होता,कुछ बादल यूँ हमारी उम्मीदों,
पर खरे उतरने लगे,चलते-चलते राहों में अब....
वे बरसने लगे,अब हममे से कुछ सितारे यूँ निकले कि,
अब ये इस तरह हंसकर,आकाश में चमकने लगे....
प्रकाश अब हम यूँ फैलाएं कि,हमारी रोशनी में वो भी आगे बढ़ने लगे,
अब हम सभी होकर खुश,आपस में भी गले लगने लगे....
काश आज हमारा एक आकाश होता,केवल वह हमारे लिए ही आज होता,
काश आज हमारे पास आकाश होता,ये नन्हा सा हाथ उसे छूने को आजाद होता....
काश आज हमारा एक आकाश होता,केवल वह हमारे लिए ही आज होता....
काश हम उसकी उचाईयों को छू पाते,काश आज हम उस तक पहुँच पाते,
आकाश हमारे लिए और हम,आकाश के लिए होते....
तो आज के कलयुग में,बोझ हम न ढ़ोते,
आज के इस समय में,नन्हे-नन्हे हाथों से....
अब बोझ उठाया नहीं जाता,अब इन छोटे-छोटे बच्चों से,
इतना बड़ा ईंट बनाया नहीं जाता,काश आज हमारे पास आकाश होता....
ये नन्हा सा हाथ उसे छूने को आजाद होता,कुछ बादल यूँ हमारी उम्मीदों,
पर खरे उतरने लगे,चलते-चलते राहों में अब....
वे बरसने लगे,अब हममे से कुछ सितारे यूँ निकले कि,
अब ये इस तरह हंसकर,आकाश में चमकने लगे....
प्रकाश अब हम यूँ फैलाएं कि,हमारी रोशनी में वो भी आगे बढ़ने लगे,
अब हम सभी होकर खुश,आपस में भी गले लगने लगे....
काश आज हमारा एक आकाश होता,केवल वह हमारे लिए ही आज होता,
काश आज हमारे पास आकाश होता,ये नन्हा सा हाथ उसे छूने को आजाद होता....
नाम : सोनू कुमार
कक्षा : 11
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें