शीर्षक :- कुछ पाने के लिए
मैं निकल पड़ा कुछ पाने के लिए....
इस तपती दुपहरिया में,
मैं सिर्फ हाथ डुलाते निकल पड़ा....
मुझे नहीं था पता,
कुछ पाने के लिए है कुछ खोना पड़ता....
यह सुनकर मैं मुश्किलों से,
लड़ता हुआ आगे बढ़ा....
आगे बढ़ने पर मैंने,
सिखा मुशिकलों से लड़ना....
और परिश्रम करना,
मुझे अब शुरू हो गई....
सूर्य की लालिमा दिखना,
मैं उस लालिमा को बस....
देखता ही रहा-देखता ही रहा,
मैं निकल पड़ा कुछ पाने के लिए....
मैं निकल पड़ा कुछ पाने के लिए....
इस तपती दुपहरिया में,
मैं सिर्फ हाथ डुलाते निकल पड़ा....
मुझे नहीं था पता,
कुछ पाने के लिए है कुछ खोना पड़ता....
यह सुनकर मैं मुश्किलों से,
लड़ता हुआ आगे बढ़ा....
आगे बढ़ने पर मैंने,
सिखा मुशिकलों से लड़ना....
और परिश्रम करना,
मुझे अब शुरू हो गई....
सूर्य की लालिमा दिखना,
मैं उस लालिमा को बस....
देखता ही रहा-देखता ही रहा,
मैं निकल पड़ा कुछ पाने के लिए....
कवि : चन्दन कुमार
कक्षा : 7
अपना घर
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