रविवार, 10 जून 2012

शीर्षक :- स्वप्न

शीर्षक  :- स्वप्न 
ह्रदय में हैं अनेक स्वप्न....
किन्तु घूम रहे हम लेकर उन्हें,
कब हो जाये ये अधूरे....
उनका नहीं कोई ठिकाना,
चलते है जैसे चार कदम....
बढ़ते स्वप्न हजार कदम,
जब स्वप्न हुए अधूरे....
नहीं देता कोई सहारा,
गिर जाते खाइयों पर....
नहीं कोई उठाने वाला,
देख नजारा जग मुस्कुराये....
जो चलते थे संग वो खुद न आये,
जब तक थी दौलत अपने संग....
लोग भी चलते थे संग,
ऐसे स्वप्नों को देखने से....
ह्रदय हुआ उदास,
न हुयी मन अभिलाषा....
पूरी हो गई प्यास,
ऐसे स्वप्नों को क्यों देखे....
जिनसे हो गए दिल उदास,
कवि : अशोक कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर

6 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

कल 13/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


'' छोटे बच्‍चों की बड़ी दुनिया ''

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना....
परिपक्व भाव.........................

अनु

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत सुन्दर भावप्रद रचना...

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

bahut khub

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

दसवीं कक्षा का बालक और यह परिपक्व कविता...!!!
सुन्दर...
शुभकामनाएं.