मंगलवार, 30 सितंबर 2025

Poem: "Minister's Meeting"


"Minister's Meeting"
meeting is still underway .
we will set again another day,
some comments and suggestion shared anyone,
some positive and negative points some.
minister represented their responsibility,
by showing their inners capability. 
everyone is serious about their reports,
I have not anymore Quotes.
Poet: Pankaj Kumar, Class: 10th,
Apna Ghar

कविता : "जब मुझे कुछ होता अहसास"

 "जब मुझे कुछ होता अहसास"
जब मुझे कुछ होता अहसास,
कुछ देर के लिए हो जाता उदास। 
फिर उस बात का लगता आस ,
उस दिन बैठे सोच रहा था खिड़की के पास। 
कभी वो सपनो में आती ,
कभी आकर जगा वो जाती।
क्या है ो कुछ समझ न आता ?
बार - बार याद उसी का आए ,
अच्छी यादो का कैसे भुलाए। 
जब मुझे कुछ होता अहसास ,
कुछ देर के लिए हो जाता उदास। 
कवि: बीरेंद्र कुमार, कक्षा: 4th,
अपना घर। 

सोमवार, 29 सितंबर 2025

कविता: "पेपर का आतंक"

 "पेपर का आतंक" 
आया है पेपर का दिन , 
नहीं आएगी नींद आराम के बीन। 
करना पड़ेगा अब तैयारी लाना है अच्छे नंबर। 
फिर होगा मौज मस्ती ,
होने वाला है "हाफ इयरली एग्जाम" । 
अब आया है  पेपर करने है तैयारी ,
बच्चे नहीं सौ पाते है। 
पढ़ाई करते है दिन और रात ,
पूरी रात वो करते है मेहनत।
आया है पेपर का दिन।  
कवि: नितीश कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर।  
 

कविता: "दशहरा का आनंद"

 "दशहरा का आनंद"
 दशहरा का मेला 
चमचमाते हाउ जैसे जुगुनू अकेला। 
दशनन रावड़ खड़ा शांत सुनेहरा ,
5 का जलेबी और 15 का समोसा ,
 खाओ भर पेट। 
बस 10  का मेला झूले ही झूला बस चारो ओर ,
सब जगह खिलौना ही बस दिखे घनघोर। 
कवि: रौशन कुमार, कक्षा: 3rd 
अपना घर। 

कविता: "मन की बाते"

कविता: "मन की बाते"
 सोच - सोच कर थक गया हूँ। 
कब आएगा वो दिन ,
जब साथ में रहते थे ,
और साथ खेलते थे ,
कभी तो वो दिन आएगा। 
जब हम साथ रहेंगे ,
अब वो दिन बीत रहे है ,
सोच - सोच कर थक गया हूँ। 
कवि: रवि कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

कविता: "हिंदी तेरा नाम है"

कविता: "हिंदी तेरा नाम है"
 हिंदी दिवस है देखो आया ,
हिंदी में यह चार चाँद लगाया। 
हिंदी हमारी मात्र भाषा ,
लोगो को न करता निराशा। 
सब को में यह भाषा आए ,
बच्चे - बूढ़े खूब बतियाए। 
क, खा, ग, घ सबको आए ,
हिंदी भाषा सबको आए। 
हिंदी सबसे अच्छी भाषा ,
लोगो को न करता निराश। 
कवि: विष्णु II, कक्षा: 4th 
अपना घर। 

कविता: "मौषम बदल रहा है"

"मौषम बदल रहा है"
आज कल दिन बदल रहा है। 
सुबह से शाम ढल रहा ,
है ये गर्मी का मौषम चल रहा है। 
आजकल के मौषम में ,
हर दिन बदल रहा है। 
कभी बारिश तो कभी धुप ,
आजकल ये मौषम ढल रहा हैं। 
गर्मी का मौषम चल रहा है। 
आजकल का दिन बदल ,
 कभी गर्मी तो कभी मौषम ठंडा। 
ऐसा कुछ मौषम चल रहा है ,
हर दिन मौषम बदल रहा है ,
ये गर्मी को मौषम चल रहा है। 
कवि: गया कुमार, कक्षा: 5th,
अपन घर 

 

शनिवार, 27 सितंबर 2025

कविता: "परीक्षा के दिन"

 "परीक्षा के दिन"
 अब परीक्षा के दिन आए 
पढ़ाई में सबने मन लगाया। 
सौ दिन का संघर्ष ,
एक दिन करके दिखलाया।  
उम्मीद का दीप जलाया ,
एक दिन के गैप में। 
सब बच्चे का होश उड़ाया। 
अब मौज - मस्ती पर रोक टोक लगाया। 
खेलने में मन नहीं लगता है। 
किताब  कॉपी को दोस्त बनाया। 
अब पैरिश के दिन आए ,
पढ़ाई में सब ने मन लगाया। 
कवि: नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

गुरुवार, 25 सितंबर 2025

कविता: " रात कब ढल गए "

 " रात कब ढल गए "
 सोचते - सोचते इस जिंदगी को ,
खो गया जाने कहाँ। 
कितनी जिद्दी है ये तंग रहे ,
जो छोड़ गए है इस हल में ,
सबकुछ छूट रहा है। 
सोचते सोचते रत कब ढल  गए ,
कुछ एहसास न रहा है,
 अब सब्र जरा खो रहा है। 
अब सब्र जरो खो रहा है। 
विश्वास जरा टूट रहा है उखड रही है। 
आत्म विश्वास की दीवारे ,
समा रहा है गुप अंदर में सोचते हुए ये ,
कब रात ढल गए है कुछ एहसास न रहा। 
कवि: नीरज, कक्षा: 7th  
अपना घर।   

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

कविता: "तेरे साथ"

 "तेरे साथ"
 क्या ये आसान होता की हम ,
आग पानी व् हवा को महसूस व जान पाते ?
गगन की उचाइयो ,
सगरो की गेहराई .
हम कैसे नाप पते ?
पृथ्वी की विशाल भुला को ,
एक नक्से में बदल पते ?
मेरे गात साथ। 
गम शूम जहाँ में घनघोर रजनी की रंग में ,
टिमटिमाती , चमकती व चलती, 
समारे की दुनिया को ,
किस तरह निहार पाते ,
अंतरिक्ष की चाँद चांदनी .
तारो - सितारों की छिपी किस्से,
 कैसे हम सुन और बुझ  पाते ,
जो तुम न होते आज ,
मेरे गात साथ। 
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर। 

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

कविता: "रातो का राजा"

"रातो का राजा"
रात में टिमटिमाते है तारे ,
वह दिखते है आसमान में बहुत सारे। 
रात में आसमान को वो सजाते है। 
और दिन में सूरज अपनी गर्मी से लोगो को बजाते है। 
दिन में सूरज का राज रहता है। 
रात में तारो का राज रहता है। 
रात में टिमटिमाते है तारे ,
वह दिखते है आसमान में बहुत सारे।
तारे रहते है बहुत दूर ,
पर वो दिखने में कभी  नै करते है मजबूर। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

सोमवार, 15 सितंबर 2025

कविता: "हमारी हिंदी भाषा "

 "हमारी हिंदी भाषा "
हर भाषा अपने अंदर रंग घोलकर रखती है। 
अपने लफ्जो से दिल को सुकून दे ,
अंदर अपने कुछ ऐसा अंदाज रखती है। 
हिंदी मिश्रित  है अनेक भाषाओ की ,
पर अपने अंदर बड़ा ज्ञान का समदर रखती है। 
 हर भाषा की होती अपनी पहचान ,
हिंदी हिंदुस्तान की है जान ,
हर जब्ज में हिंदी बहेगी। 
हिन्दुस्तानियों का गौरव रहेगी ,
हर हिन्दू का हिंदुत्व दिखेगी ,
सूंदर लफ्जों से इसका गौरव सजेगा। 
मेरे तरफ से आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक सुभकामनाए !
कवि: साहिल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर 

रविवार, 14 सितंबर 2025

कविता: " हिंदी दिवस "

 " हिंदी दिवस "
 कुछ उनका भी सम्मान है। 
जिसने दिया हिंदी का नाम है। 
सिमट गए सारे लोग जहां के ,
बस जपते जपते हिंदी का नाम है। 
बात - बिवाद तो हुई जरूर इन पर 
पर लोग खड़े थे सीना तान के ,
के सम्मान दिया उन्होंने अपने राष्ट्र भाषा।  
अभिमान के अंग्रेज के अत्याचार से , 
कोड़े खा - खाकर उसने काम किया ,
भाषाए तो बनाई अनेक है। 
पर हिंदी भाषा का सम्मान किया ,
 कुछ उनका भी सम्मान है। 
जिसने दिया हिंदी का नाम है। 
मेरे तरफ से आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक सुभकामनाए !
कवि: सुल्तान कुमार कक्षा: 11th,
अपना घर। 

शनिवार, 13 सितंबर 2025

कविता: "मौशम की किया तारीफ करो"

 "मौशम की किया तारीफ करो"
आज का मौशम कितना अच्छा है , 
देखो ठंडी - ठंडी हवा चल है। 
और चिड़ियाँ भी उड़ रहे है। 
जैसे सब हो मैदान में ,
तितली भी उड़ रही हो। 
बच्चे बड़ी मेहनत से तितलियाँ पकड़ रहे है। 
लेकिन तितलियाँ बड़ी चालक है ,
पकडने से पहले उड़ जा रही है। 
आज का मौशम कितना अच्छा है 
 कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 

गुरुवार, 11 सितंबर 2025

कविता: "सपनों को नया आकार"

 "सपनों को नया आकार"
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे से होगी कोशिश पूरी। 
जो सपने टूट चुके ,
अब उसे है सजाना। 
सूंदर सी उसको आकार देना। 
चहकती गौरैया सी मुस्कान देना। 
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे बढ़ना है कदम से कदम मिलाए।
गुस्सा के रहो में प्यार बढ़ते - बढ़ते। 
आगे बढ़ाना है हौसलो की चिंगारी जलाते  ,
अंधकार को दूर करते - करते। 
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे बढ़ना है कदम से कदम मिलाए।
कवि: अमित कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 


सोमवार, 8 सितंबर 2025

कविता: "खुश खेत, हैरान इंसान"

 "खुश खेत, हैरान इंसान" 
खामोश है यह मौशम आज ,
थोड़ा सा उमड़ रहा गरज रहा है। 
और सूरज हाँस रहा है। 
तो आ रही है धरती पर ,
लेकिन बारिश भी जमा रही उन पर ,
पहले जैसा गिला कर दिया है। 
गली और रास्ते भर दिया है। 
खेत खलियान तो खुश है इनसे ,
पर मनुष्य हैरान है। 
क्यूंकि उनको भी खेत में काम है।  
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th, 
अपना घर।  
 

कविता: "विज्ञान और गणित की भूमिका"

"विज्ञान और गणित की भूमिका"  
 बायोलॉजी हमें जीवन जीना सिखाया है। 
केमिस्ट्री हमें प्रैक्टिकल करके दिखाया है। 
फिजिक्स हमें रहना बताता है।  
  ये सभी  साइंस हमारे जीवन में जताता है। 
मैथ्स हमें जीवन के समस्याओ से  लड़ना सिखाता है। 
उसको कैसे सुलझाए जाए  है। 
 अपने बातो  को प्रकट करना बताता है। 
इंग्लिश हमें विदेश में जीना सिखाता है। 
ऐ सभी  को हर एक मनुष्य जताता है।
कवि:  गोविंदा कुमार,  कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

रविवार, 7 सितंबर 2025

कविता: "बहन की कमी"

 "बहन की कमी"
 मेरी एक बहन भी थी, 
वो भी मुझे छोड़ गई। 
न जाने क्यों मुझसे मुँह मोड़ गई ,
मैं न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
बहन से किया हुआ वादा टूट गया है,
न जाने क्यों वो टूट गई। 
वो कहती थी भैया आप ही आएगा,
आप हर जगह मुझे ही पाएगा। 
न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
क्या करे इस बीते लम्हे को जो ,
रोलता है तो कभी हसता है। 
न जाने क्यों ये रिस्ता मुँह मोड़ लिया हैं ,
इस बड़े भाई का दिल तोड़ दिया हैं। 
मैं न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
 अपना घर। 


गुरुवार, 4 सितंबर 2025

कविता: "सपने सकारने हैं"

 "सपने सकारने हैं"
 ख्वाब जो देखे , वो अब बिखड़ गया , 
पहले तो पास में थी , पर अब लगता बिखर हो गया। 
अब तो लगता है शायद , 
मन ने भी कोशिश करना छोड़ दिया। 
वरना ये मन मेरा न जाने क्यों , 
काम करना छोड़ दिया। 
हरे हैं  न जाने कितने मैंच फिर भी कोशिश करना छोड़ दिया,
पर कभी लगता है सांत रहने में ही भलाई हैं। 
चिल्लाने का कोई फायदा नहीं। 
बस एक बार मुस्कुरा के देख चाँद भी हस देगा।  
 ख्वाब जो देखे , वो अब बिखड़ गया। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

बुधवार, 3 सितंबर 2025

कविता: "बादलों की कहानी"

 "बादलों की कहानी"
बूंदा बाँदी सुरु हुई थी ,
कुछ खास नहीं पर बरस रही थी। 
छाए थे काले घनघोर बादल ,
चारो ओर अँधेरा ही था। 
हवा रुख ने बदल दिया ,
मौशम जब उमड़ी थी। 
उड़ा ले गए बादलो को ,
कही दूर जाके फेकि थी। 
रोशनी आ पहुंची धरती पर ,
जब सूरज चमका था। 
 बूंदा बाँदी सुरु हुई थी ,
कुछ खास नहीं पर बार्स रही थी। 
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11TH 
अपना घर। 

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

कविता: "भगवान का कुछ दिया हुआ है"

 "भगवान का कुछ दिया हुआ है"
 भगवान ने कुछ दिया मुझको ,
मैं तुमको खो नहीं सकता तुमको। 
चाहे हँसा लू उसको पर रुलाना नहीं चाहता। 
 भगवान ने कुछ दिया मुझको ,
  वो मेरी जान से भी कीमती हैं। 
मेरे बीन एक पल भी नहीं रहती हैं। 
  चाहती है मेरा शिकायत ,
फिर भी मैं खामोश हूँ इस बदलते दुनिया में। 
मैं मनाता हूँ की मै गलत हो सकता हूँ ,
पर मेरे बीना कैसे रह सकती हो तुम। 
आशु बहाएगी जैसे नदी की धारा ,
फिर भी है सबसे प्यारी। 
 भगवान ने कुछ दिया मुझको ,
मैं तुमको खो नहीं सकता तुमको। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th 
अपना घर 

सोमवार, 1 सितंबर 2025

कविता: "जिंदगी की तलाश में"

"जिंदगी की तलाश में" 
 ये मौसम फीका - फीका सा हैं ,
ये दिन सूखे - सूखे से हैं। 
सब लोग बेगाने से हैं  ,
इन सब के बीच हम अनजाने है। 
घर - बार छोड़कर इस अनजान सी हवेली में ,
आये है नई जिंदगी की तलश में ,
बन रहा है आगे भविष्य चलो चले हम पर्वत कैलाश में। 
नये जिंदगी की आश में ,
निकल पड़े साथी की तलाश में।  
आँखे में हमेश आँशु लेके ,
रहते है एक कोने में पड़े ,
एक पर्दे के पीछे छाया बनके ,
रहते है हमेश खड़े।
कवि: मंगल कुमार कक्षा: 9th 
अपना घर।