शीर्षक :- मेरा मन कहाँ
जाने कहाँ को चलता है ये मन....
जाने क्यों मचलता है ये मन,
जिधर भी चलता है ये मन....
उधर ही चल पड़ता है ये तन,
मन सोचंता है कि....
बिन पढ़े सफलता मिल जाये,
और स्कूल में सबसे ज्यादा....
मेरे ही नंबर आये,
इसी प्रकार के हजारों विचार....
हमारे मन में है आते,
इन्ही हजारों विचारों में....
हमारे सब विचार खो जाते,
मन के इन्ही विचारों से....
मिलती है मन को संतुष्टी,
धीरे-धीरे मेहनत करके....
होती इन विचारों की पुष्टि,
जाने कहाँ को चलता है ये मन....
जाने क्यों मचलता है ये मन,
जिधर भी चलता है ये मन....
उधर ही चल पड़ता है ये तन,
मन सोचंता है कि....
बिन पढ़े सफलता मिल जाये,
और स्कूल में सबसे ज्यादा....
मेरे ही नंबर आये,
इसी प्रकार के हजारों विचार....
हमारे मन में है आते,
इन्ही हजारों विचारों में....
हमारे सब विचार खो जाते,
मन के इन्ही विचारों से....
मिलती है मन को संतुष्टी,
धीरे-धीरे मेहनत करके....
होती इन विचारों की पुष्टि,
कवि:- धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा:- 9
अपना घर
1 टिप्पणी:
वाह भई धमैंन्द्र जी आप तो कइयों से कहीं बढ़िया लिखते हो
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