शीर्षक :- कैसे सूरज उगता है
पूरब का दरवाजा खोला....
धीरे-धीरे सूरज उगता,
नारंगी रंग का दिखता है....
ऐसे सूरज उगता है,
सारी चिड़ियाँ गाती है....
खिलती कलियाँ सारी है,
दिन भर सीडी चढ़ता है....
जैसे सूरज बढ़ता है,
लगते है सभी कामों में मन....
आलस में न रहता तन,
धरती गगन धमकता है....
सूरज जैसे चमकाता है,
गर्मी कम हो जाती है....
धूप थकी सी जाती है,
सूरज आगे चलता है....
जैसे सूरज ढलता है,
पूरब का दरवाजा खोला....
धीरे-धीरे सूरज उगता,
नारंगी रंग का दिखता है....
ऐसे सूरज उगता है,
सारी चिड़ियाँ गाती है....
खिलती कलियाँ सारी है,
दिन भर सीडी चढ़ता है....
जैसे सूरज बढ़ता है,
लगते है सभी कामों में मन....
आलस में न रहता तन,
धरती गगन धमकता है....
सूरज जैसे चमकाता है,
गर्मी कम हो जाती है....
धूप थकी सी जाती है,
सूरज आगे चलता है....
जैसे सूरज ढलता है,
कवि:- जीतेन्द्र कुमार
कक्षा:- 9
अपना घर
1 टिप्पणी:
अरे वाह जीतेंद्र जी बडी अच्छी कविता लिखी है आपने ।
बधाई ।
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