शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

शीर्षक :- बात

शीर्षक :- बात 
बात की भी क्या बात है....
बातों से भी बड़ी बात है,
बात का बड़ा प्रभाव है....
बात से भी होता घाव है....
किसी बात पर आता है गुस्सा ,
तो किसी बात पर आता हँसना....
बड़ा ही कठिन है भाई,
बात के इस अर्थ को समझना....
सिर्फ एक ही बात से हुई,
इस महाभारत की रचना....
पता नहीं कौन सी बात, किसको बुरी लग जाये,
भाई मुंह की इस बात से बचना....
बात के है बहुत प्रकार,
छोटी बात, बड़ी बात, मीठी बात, कडवी बात....
इन बातों ही बातों में तो हो जाती है घूंसा लात,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9 
अपनाघर

3 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

क्या कहने!

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3. तख़लीक़-ए-नज़र

Shah Nawaz ने कहा…

Waah.... Bahut khoob Dharmender.... Bahut achchha likha hai...

बेनामी ने कहा…

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