" अपवाहें "
फैली है चारो तरह अपवाहें,
जाएं तो हम कहाँ हम जाए |
मंदिर मस्जिद जैसे बट गए घर,
प्यार से रहने वाले हो गए बेघर |
शांति भी दीवारों में छिप गई,,
पीड़ितों की चिल्लाहटें गूँज रही |
उम्मीद के परिंदे भी बैठ गए ,
इस सोच में पड़े रह गए |
वो शांति भी जल्द आएगी,
वो खुशिया भीचेहरे पर छाएगी
नाम : प्रांजुल कुमार , कक्षा :8th , अपनाघर
कवि परिचय : यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | पड़े में बहुत अच्छे हैं | यह चाहते हैं की कुछ लाइफ में बनकर दिखलाना हैं , बहुत सरे लक्ष्य रखे हैं | कवितायेँ बहुत प्रेरणादयक लिखते हैं |
1 टिप्पणी:
वाह ! गंभीर सोच !
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