मंगलवार, 13 अगस्त 2019

कविता : सागर बन जाऊँ

" सागर बन जाऊँ "

मन करता है सागर बन जाऊँ,
सन्देश देने वाली लहरें बन जाऊँ |
ऐसे उठूँ कि गिर न सकूँ,
लोगों को जीना सिखाऊँ |
पानी की तरह रहना सिखाऊँ,
मैं उन सभी से यह बात कह पाऊँ |
मन करता है सागर बन जाऊँ,
सन्देश देने वाली लहरें बन जाऊँ |
काश सभी को सन्देश पसंद आए,
मेरी बातें लोगों के दिल को छू जाए |  
काश मैं एक संदेशा कहलाऊँ,
मन करता है सागर बन जाऊँ |

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के निवासी हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और बहुत सी कवितायेँ लिख भी चुके हैं | कवितायेँ लिखने के आलावा क्रिकेट खेलना और संगीत में भी बहुत रूचि है |

1 टिप्पणी:

विश्वमोहन ने कहा…

वाह! बहुत सुंदर रचना।