" डर है मुझे "
रंग के त्योहारों में,
एक अनोखे नज़ारों में,
खुद को मुझे खोने का डर है |
डर है मुझे उन चीजों से,
जो मुझे आकर्षित करती है |
डर है मुझे उन शक्षों से,
जो अपने बातों में दूसरों को गुमराह करते हैं |
नयी हसीन बाज़ार में,
एक कहीं दुनिया के आढ़ में |
खुद को मुझे खोने का डर है,
डर है मुझे रंगीन चेहरे से |
डर है मुझे हसीन पहरे से,
मुझे डर है खुद को खोने का |
कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक " डर है मुझे " | देवराज ने यह कविता समाज को देखकर लिखी है की आज के युग में लोग आकर्षित होकर खुद खो देते हैं | देवराज को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | देवराज एक इंजीनयर बनना चाहते है |
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