गुरुवार, 29 अगस्त 2019

कविता : पानी की बूँदें

" पानी की बूँदें "

ये पानी की बूँदें गिरती हुई कहती हैं,
क्या मैं ही हूँ या पूरी दुनियां ऐसी है |
मैं एक बून्द की तरह गिरती है,
शरण न मिलने पर यूँ ही फिरती है |
धूल में मिलूँगी या यूँ ही बून्द रहूंगी,
यदि लक्ष्य पूरा हुआ यह बात सबसे कहूँगी |


कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है | प्रांजुल को नै चीजें सिखने में बहुत रूचि है | प्रांजुल पढ़ाई के साथ - साथ गतिविधियों में भी अच्छा है |

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