" एक कण हूँ मैं "
बचपन से धूप में तपता रहा हूँ मैं,
धूल के कणों से खेलता रहा हूँ मैं |
पर मुझे आज एक मौका मिला है,
जो बहुत ही मुश्किल से मिला है |
इतने बड़े संसार में,
इस बड़े परिवार में |
शायद एक कण हूँ मैं | |
छोटे चीजों से खेलना पसंद करता हूँ,
उन्हें हाथों में रखकर देखना पसंद करता हूँ |
उसे एक सुनहरी जगह रखकर,
करीब से समझना पसंद करता हूँ मैं,
क्योंकि शायद मैं एक कण हूँ |
कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिला के रहने वाला है | देवराज को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है | इस कविता का शीर्षक है " एक कण हूँ मैं "जो की परिवार में सदस्य के महत्व को दर्शाता है |
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