" मैं मुसाफिर "
कड़क धुप की गर्म हवाओं में,
चलता रहता हूँ मैं मुसाफिर |
न छाँव और न ही थकान,
महसूस करता हूँ मैं आखिर |
उस लक्ष्य को मुझे पाना है,
बिना रुके लक्ष्य को है जाना |
चाहे हो जितनी बाधाएँ ,
हर मुसीबतों को तर जाएँ |
हर कदम को संभल कर रखना,
हर बाधाओं को परखना |
आखिर लक्ष्य तक जाना है,
यह संदेशा सभी को बताना है |
कवि : प्रांजुल कुमर , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखे का बहुत शौक है और वह बहुत सी कवितायेँ भी लिख चुके हैं | पढ़ लिखकर एक अच्छे इंजीनियर बनना चाहते है |
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