"मेरे पापा"
सुबह से लेकर शाम तक काम है वे करते,
मेहनत कर के खाने को एक तिनका है लाते,
उनके काम भी आसान नहीं होते,
बड़ी ही मुश्किल से रातो को चैन की नींद सो पते।
इस ठंडी की आग में, करते है वो दिन रात काम,
हाथो पर अभी भी है पड़े छाले, फिर भी उनके सपने है बड़े निराले।
अपनी परिवार के लिए सब कुछ करते है,
हर त्यौहार में अपनी परिवार के ख़ुशी के लिए,
मेहनत कर के खाने को एक तिनका है लाते,
उनके काम भी आसान नहीं होते,
बड़ी ही मुश्किल से रातो को चैन की नींद सो पते।
इस ठंडी की आग में, करते है वो दिन रात काम,
हाथो पर अभी भी है पड़े छाले, फिर भी उनके सपने है बड़े निराले।
अपनी परिवार के लिए सब कुछ करते है,
हर त्यौहार में अपनी परिवार के ख़ुशी के लिए,
कही देर न हो जाए इसलिए समय से पहले आ जाते है,
खिलौने नहीं तो खाने को ही सही ले आते है।
उनके मेहनत से बड़े - बड़े इमारत खड़े है,
खिलौने नहीं तो खाने को ही सही ले आते है।
उनके मेहनत से बड़े - बड़े इमारत खड़े है,
फिर भी वे देश के किसी कोने में लचार से पड़े है।
उनको भी तो कुछ हक़ दो, नहीं उनके बच्चों पढ़ने दो,
उनके वो नन्हे - मुंहे बच्चे पढ़ने को बेताब है ,
उन्हे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस एक बास्ते से भरी किताब दो,
आसमान ज्यादा दूर नहीं है किताबो की जरिए उन्हें उड़न भरने दो।
कही देर न हो जाए इसलिए समय से पहले आ जाते है,
घर के किसी कोने में वे सो जाते है।
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
2 टिप्पणियां:
आपकी कविए ने सभी के पापा की मेहनत और त्याग को शब्दों में बखूबी उतारा गया है। सुबह से शाम तक काम करने, हाथों पर छाले झेलने और फिर भी बच्चों के लिए सब कुछ करने की उनकी निस्वार्थ भावना बहुत ही असरदार तरीके से सामने आई है।
आपका बहुत - बहुत शिक्रिया मेरे इस कविता को पढ़ने के लिए तथा
पापा की मेहनत को जानने के लिए।
मेरे पापा और मम्मी के बिना जिंदगी अधूरी है।
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