हमारा "Kho - Kho मैच"
चारो तरफ से सीटी की आवाज थी,
कुछ टीमों थी और वही सक्ले तैयार थी,
जूनून सभी के अंदर भरा हुआ था ,
बस उसको निकलने की बारी थी सबको जितना था,
बस यही सोच में आए थे,
हार जाएंगे, वह तो बाद की बात है ,
आ गए तो कोशिश करके जाएंगे।
सफलता उसी को मिल रही है ,
जो बल, बुद्धि का प्रयोग कर रहा है ,
बाकी तो बुद्धिमान लोग तो थे ही,
और उसी में हम लोगो का मैच चल रहा था।
पर उनसे ज्यादा हम लोग ने कर दिया ,
हम ने भी कर दी इतनी मेहनत ,
की हो गया उनकी मेहनत फर्जी।
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
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