बुधवार, 12 नवंबर 2025

कविता: "माँ का आँचल"

"माँ का आँचल"
 कभी पीछे छिप करता था ,
कभी डरकर भाग जाया करता था ,
भीड़ देखकर माँ के आँचल में छिप जाता था ,
थोड़ी सी उलझन में और डर  की गुर्राहट से ,
शर्माते हुए इन लोगों से ,
डरकर भाग जाया, करता था। 
करीब होता था तो माँ के आँचल में छिप जाता था ,
अब बदल गया, बड़े हुआ तो बड़ा चढाव आया। 
रहो में गिरे, तो माँ ने उठाया ,
जब मैं रुठा तब माँ ने मनाया। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

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