"माँ का आँचल"
कभी पीछे छिप करता था ,
कभी डरकर भाग जाया करता था ,
भीड़ देखकर माँ के आँचल में छिप जाता था ,
थोड़ी सी उलझन में और डर की गुर्राहट से ,
शर्माते हुए इन लोगों से ,
डरकर भाग जाया, करता था।
करीब होता था तो माँ के आँचल में छिप जाता था ,
अब बदल गया, बड़े हुआ तो बड़ा चढाव आया।
रहो में गिरे, तो माँ ने उठाया ,
जब मैं रुठा तब माँ ने मनाया।
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें