शनिवार, 8 नवंबर 2025

कविता: "सर्दी का मौशम"

"सर्दी का मौशम"
 ये मौशम है सर्दी का,
रजाई काम करता है है वर्दी का। 
इस मौशम में कुछ भी पहनो ,
सब कुछ कम पड़  जाता है ,
चाहे जैकेट कम हो या रजाई, कंम्बल ,
फिर भी ये मौशम है ठंडी का ,
थोड़ा भी महसूस न होता गर्मी,
चाहे जितना छोड़कर रखो रजाई कंम्बल ,
क्यूंकि ये मौशम है सर्दी का। 
ये मौशम बहुत सुहाना लगता है। 
कवि: अप्तार हुसैन, कक्षा: 8th,
अपना घर। 

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