मंगलवार, 11 नवंबर 2025

कविता: "ठंडी"

"ठंडी"
 फिर से वही दिन आएंगे ,
ठंडी वाले कपड़े निकाले जाएंगे। 
कम्बल का फिर से उपयोग होगा ,
और रजाई फिर से ओढे जाएगे ,
हो सकेगा तो शायद हप्ते में रोज नहाएंगे,
फिर से वही दिन आएंगे। 
ना चाहते हुआ भी स्कूल जाएंगे ,
और शायद जाकर भी डॉट खाएंगे। 
इतना होने बाद भी रोज नहाएंगे ,
बाकी के बच्चे भी बत्तीसी दिखाएंगे 
हम भी उसी में मिल जाएंगे। 
और रोज की तरह वही दिन आएगे। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

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