"ठंडी"
फिर से वही दिन आएंगे ,
ठंडी वाले कपड़े निकाले जाएंगे।
कम्बल का फिर से उपयोग होगा ,
और रजाई फिर से ओढे जाएगे ,
हो सकेगा तो शायद हप्ते में रोज नहाएंगे,
फिर से वही दिन आएंगे।
ना चाहते हुआ भी स्कूल जाएंगे ,
और शायद जाकर भी डॉट खाएंगे।
इतना होने बाद भी रोज नहाएंगे ,
बाकी के बच्चे भी बत्तीसी दिखाएंगे
हम भी उसी में मिल जाएंगे।
और रोज की तरह वही दिन आएगे।
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
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