"बहारों का साथ छोड़ना"
ए सदाएँ पूछती है इस बहारों से,
क्या जिया तुमने दुनिया में ?
जिंदगी भी रूठी और साथ भी छूटा ,
न जाने कैसा रिस्ता टुटा ,
हर बदलते मौशम में ,
कशमकश भरी जिंदगी में ,
मिलती नहीं नजरे - नजरे से ,
मुस्कुराकर छिप जाती है इन भीड़ भरी सड़के पे।
बहारो ने रास्ता छोड़ा, सदाओं ने साथ भी,
आँखों ने रोना छोड़ा, चेहरे ने मुस्कुराना भी ,
बहारो ने साथ छोड़ा और तुमने हाथ भी ,
जिंदगी भी रूठी और साथ भी छूटा।
अब पूछती है सदाएँ इन बहारों से ,
क्या जिया तुमने दुनिया में ,
जिंदगी भी रूठी और साथ भी चुटी ,
न जाने कैसे ये रिस्ता टुटा।
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें