शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

कविता: वो बचपन का भी किया जवना था।

"वो भी किया जवना था"
हमने भी खाए है तेज चलती हवा की झोके, 
वो बारिश की गिरती बूंदे में हमने भी खेले है ,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
 बारिश की पानी में नाव को बहाना था ,
तूफान हो या आंधी स्कूल ही था ,
दोस्ती यारी तो वही होती थी ,
घर में तो सिर्फ पापा की ही ख्वाफ चलती थी ,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
   की हमने भी मार खाए है पापा से ,
गुस्सा हो के भी खुश रह लिया करता था ,
 नहीं तो पापा की वो मार याद कर लिया करता था। 
उनका गुस्सा भी हम ही दिलते थे ,
उस गुस्से को झेलना भी मेरे काम हो जाता था ,
हमने भी खाए है तेज चलती हवा की झोके,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
कवि: गोपाल II, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

गुरुवार, 27 नवंबर 2025

कविता: "दिल में राज करता मेरा भाई"

"दिल में राज करता मेरा भाई"
 भाई आज भी तू जिन्दा है मेरे दिल में ,
तेरे हर एक बात याद दिलाती है ,
मुझे आज भी बहुत याद आती है। 
तेरे बिन सब कुछ फीका फीका सा लगता है ,
यहाँ तक की मेरा चेहरा रुठा - रुठा सा लगता है ,
जब तू उदास सा दिखता है ,
सूरज भी उदास सा अपने घर से देखाई देता है ,
भाई आज भी तू जिन्दा है मेरे दिल में। 
राजा के तरह बैठा के रखा है तुम्हे, 
बस ताज पहनाना बाकी है ,
चाँद भी रुठी - रुठी सी लगती है ,
भाई आज भी तू जिन्दा है मेरे दिल में। 
तेरे सामने सुरजा और चाँद भी बेकार है, 
तेरे लिए तो ये बनाया मेरे द्वारा संसार है।
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।  

कविता: "स्वागत करने को तयार है"

"स्वागत करने को तयार है"
 हर कदम ,हर राह ,
परेशानियाँ परेशान करने को तयार है ,
कठिनाई तुम्हारी राह देख रही है , 
उन्हें बस तेरा स्वागत करना है। 
काटे होंगे, रास्ते बहुत होंगे अपने मन को संभालना  ,
फूल तो तेरे नसीब में है ही नहीं ,बस काटे से स्वागत होगा। 
तेरे लिए तो आएंगे बहुत सरे पर न होंगे तुम्हारे ,
पसीना तुम्हे बहाना है , बाकी तो आएंगे देखने। 
जोश तो दिलाना उनका काम है 
शेरो में शेर तेरा नाम होगा। 
कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 


मंगलवार, 25 नवंबर 2025

कविता: "मेरे गुरु जी"

"मेरे गुरु जी"
 गुरु बस तेरा ही एक सहारा था ,
राहो का वो एक सहारा था ,
चाँदो का वो एक तारा था ,
कठिन परिस्थित्यों में भी मुस्कुराना था। 
सबके साथ रहना भी था ,
अपनी मन की बात को बताता था ,
समय बिताने के लिए मन को बहलाता था। 
कभी - कभी तो खुद से बात कर लिया करता था ,
न जाने परिंदा कैसा था वो दुखी में भी ख़ुशी नजर आती थी। 
रातो को चाँद को देखा करता था ,
सुबह सूरज की पूजा करता था ,
अपनी मन की बात को बता था ,
गजरता हुआ वह एक सहारा था। 
रहो के लिए रह था वो ,
जीवन जीने के लिए वो एक चाह था वो। 
कवि: गोपाल II, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

 

सोमवार, 24 नवंबर 2025

कविता: "नए - नए उतरे हो अभी रहो पर"

"नए - नए उतरे हो अभी रहो पर"
 ख्यालों में खो रहे हो अभी से राहो पर,
तर्क करते हो बुजूर्गो के तजुर्बो पर ,
जिंदगी जो जी रहे हो यादो में। 
इसके किस्से रहते है उनके जज्बातो में ,
उड़ाने आओ असल जिंदगानी में। 
नादान हो तुम अभी ,
भीतर से खोखले और कमजोर हो अभी ,
खोओ नहीं किसी और की दुनिया पर ,
क्यूंकि नए नए उतरे हो रहो पर अभी। 
हाव - भाव से बहुत कुछ बदलाव दीखते है बाहर ,
इन बदलावे के लक्षण, खिखते है खतरनाक ,
ज्यादा बड़े नहीं हुए अभी। 
तर्क करो बुजूर्गो से इतने बड़े नहीं हो अभी,
अभी ठहरो जमी पर ,
क्यूंकि नए - नए उतरे हो रहो पर। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपन घर 

रविवार, 23 नवंबर 2025

कविता: "मेरा बचपन"

 "मेरा बचपन"
वो बचपन का क्या जवना था, 
जब कार्टून के फोटो हमारे लिया खजाना है। 
न काम की टेंसन न पढ़ाई की चिंता ,
बस मौज मस्ती में ही मन लगाना था ,
सुबह घर से बहार निकल जाना ,
और पुरे दिन न किसी का ठिकाना था। 
बस गुल्ली ठंडा खेलना और चिड़ियाँ को देखना ,
 दिन भर का यही एक ठिकाना था ,
बिन बताए घर से बहार जाना था ,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
कभी कभी तो घर का ही ठिकाना था ,
पेट दर्द तो एक बहाना था। 
स्कुल बंक करना एक बहाना था ,
वो बचपन का भी किया जवना था ,
जब 75 % अपने जिंदगी को उड़ाना था ,
वो बचपन का क्या जवना था। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

शनिवार, 22 नवंबर 2025

कविता: "मेरे पापा"

"मेरे पापा"
सुबह से लेकर शाम तक काम है वे करते, 
मेहनत कर के खाने को एक तिनका है लाते,
उनके काम भी आसान नहीं होते,
बड़ी ही मुश्किल से रातो को चैन की नींद सो पते। 
इस ठंडी की आग में, करते है वो दिन रात काम, 
हाथो पर अभी भी है पड़े छाले, फिर भी उनके सपने है बड़े निराले। 
अपनी परिवार के लिए सब कुछ करते है,
हर त्यौहार में अपनी परिवार के ख़ुशी के लिए,
कही देर न हो जाए इसलिए समय से पहले आ जाते है, 
 खिलौने नहीं तो खाने को ही सही ले आते है। 
 उनके मेहनत से बड़े - बड़े इमारत खड़े है, 
 फिर भी वे देश के किसी कोने में लचार से पड़े है। 
उनको भी तो कुछ हक़ दो, नहीं उनके बच्चों पढ़ने दो,
उनके वो नन्हे - मुंहे बच्चे पढ़ने को बेताब है ,
उन्हे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस एक बास्ते से भरी किताब दो,
 आसमान ज्यादा दूर नहीं है किताबो की जरिए उन्हें उड़न भरने दो।
कही देर न हो जाए इसलिए समय से पहले आ जाते है, 
घर के किसी कोने में वे सो जाते है।  
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

कविता: "मेरा बचपन"

"मेरा बचपन"
वो भी क्या यादे थी ,
बचपन भी दोस्ती यारी के बीच गुजारी थी ,
शैतानी तो करते ही साथ में पढ़ते भी थे। 
ख़ुशी तो मिलती थी साथ खेला करते थे 
एक तरफ दोस्तों का प्यार तो दूसरी तरफ माँ और पापा का प्यार ,
सबके साथ बैठ कर खाना खाना , 
हाथ बहार जाकर धोना तो एक बहाना था ,
बिन बताए घर के बाहर तो जाना ही था ,
वो भी क्या यादे थी। 
घूमना तो एक बहाना था , 
असली बात तो यह थी की दोस्तों के ,
 साथ कही बेर तोड़ने जाना था। 
कवि: शिवा कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

गुरुवार, 20 नवंबर 2025

कविता: "बताए रखना"

"बताए रखना"  
ये बात हवाओ को भी बताए रखना,
अंधेरी रोशनी में भी चिराागो को जलाऐ रखना। 
जिस वीरो के नाम से काँप उठती थी ब्रिटिश ,
उन वीरो को अपने दिलो में बसाए रखना। 
ये बात हवाओ को भी बताए रखना। 
वीरो ने अपनी लहू को देकर अपने देश की हिफाजत की ,
उस देश के तिरंगे की शान हमेशा बनाए रखना। 
ये बात हवाओ को बताए रखना। 
कवि: रवि कुमार, कक्षा:4th,
अपना घर 

बुधवार, 19 नवंबर 2025

कविता: "बढ़ती ठंडी"

"बढ़ती ठंडी"
ये  मौशम भी न कितना सुहाना है ,
इस ठंडी को भी हर साल नवंबर में आना है। 
कर देता है मुशिकल जीना ,
यहाँ तक की पानी को कर रखता है ठंडा ,
स्वेटर हो या जैकेट सबको करता है फ़ैल ,
ये ठंडी कर देता है कम्बल को भी फ़ैल। 
रातों को ओस गिरता है ,
सबको घर में ही बैठता है।
ये मौशम भी न कितना सुहाना। 
अब रात हो रही है लम्बी दिन को कर दिया है खबरदार ,
रुक - रुक कर चल है अब हमारी जिंदगी इस ठंडी के मौशम में ,
मुशिकल कर रखा है जीना बिन कम्बल में। 
ये  मौशम भी न कितना सुहाना है ,
इस ठंडी को भी हर साल नवंबर में आना है। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 


मंगलवार, 18 नवंबर 2025

कविता: "जन्मों का रिस्ता"

"जन्मों का रिस्ता"
ऐ मेरे दोस्त , इस दोस्ती को भूलना मत,
ये दोस्ती का रिस्ता तोड़ना मत ,
चाहे कुछ भी हो जाए तुम , 
हमें मत भूलना ऐ मेरे भाई। 
हर एक परेशानी में काम आएंगे एक दूसरे के ,
चाहे जो भी हो जाए , एक साथ रहेंगे एक दूसरे के। 
हमारी दोस्ती भी कितनी हसीन है , 
जैसे खुसबू से महकता हर एक दिन है। 
साथ चले तो राहो आसान हो जाती है ,
दोस्ती से जिंदगी में रौनक सी छा जाती है। 
 ऐ दोस्त मेरे हमेशा मेरे साथ ही रहना तुम ,
सब कुछ खो जाए पर न खोना तुम। 
लड़ाई कर के भी साथ रहेंगे, भले ही हमारे बिच छुपी छा जाए,
फिर बात करेंगे तुम एक दूसरे से। 
उदास स चेहरा मत बनाना तुम ,
रोने के जगह हसना तुम। 
अपने आँशु को संभलकर रखना ऐ मेरे दोस्त,  
ये मोती से दिखने वाले, करोड़ो में बिकने वाले,
अपने भी है बहुत से चाहने वाले। 
कवि: नीरज कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 




सोमवार, 17 नवंबर 2025

कविता: "ठंडी का मौशम"

"ठंडी का मौशम"
 ठंडी धीरे धीरे बड़ रही है ,
दिन छोटे तथा राते लंबी है ,
 सभी के जुबान में एक ही चीज ,
है की बहुत सर्दी हो  रही है। 
लड़के - बच्चे , बूढे दादा ,
सब है ओढ़े है साल ,
पता नहीं कब जाएगी सर्दी। 
शायद लग जाए कई साल ,
सर्दी में कपकपी छूटी है ,
क्यूंकि ये मुस्कान सर्दी की जूठी है। 
कवि नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

रविवार, 16 नवंबर 2025

कविता: "कविता"

"कविता"
कविता ऐसा हो जिसमे मजा आए ,
रस हो खिलखिलाहट हो ,
जो पढ़ने में भा जाए, 
पहाड़ हो, रंग - बिरंग तितलियाँ हो ,
अहसास हो उस पल का। 
तेज हवाए और आंधी भी हो ,
फसले भी खिल उड़े और हरियाली भी ,
जो दिल और दिमाग में समा जाए ,
कविता ऐसा हो। 
कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 


कविता: "14 नवंबर"

"14  नवंबर"
 आज चाचा नेहरू के फोटो पर फूल चढ़ाते है ,
वो नही है तो क़्या हुआ ,
हम फिर भी उनकी जयंती मानते है। 
 वापस खुशियाँ चाचा नेहरू पर आती है ,
यही खुशियाँ चाचा की याद दिलाती है।  
वह बच्चो के सिखाते थे, की कोशिश करते रहो ,
यह आकाश तुम्हारा है, मिलेगा तुमको सब कुछ तुमको ,
बस संघर्ष तुम्हारा हो। 
 आज चाचा नेहरू के फोटो पर फूल चढ़ाते है। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: "बहारों का साथ छोड़ना"

"बहारों का साथ छोड़ना"
 ए सदाएँ पूछती है इस बहारों से, 
क्या जिया तुमने दुनिया में ?
जिंदगी भी रूठी और साथ भी छूटा ,
न जाने कैसा रिस्ता टुटा ,
हर बदलते मौशम में ,
कशमकश भरी जिंदगी में ,
मिलती नहीं नजरे - नजरे से ,
मुस्कुराकर छिप जाती है इन भीड़ भरी सड़के पे। 

बहारो ने रास्ता छोड़ा, सदाओं ने साथ भी,
आँखों ने रोना छोड़ा, चेहरे ने मुस्कुराना भी ,
बहारो ने साथ छोड़ा और तुमने हाथ भी ,
जिंदगी भी रूठी और साथ भी छूटा।

अब पूछती है सदाएँ इन बहारों से ,
क्या जिया तुमने दुनिया में ,
जिंदगी भी रूठी और साथ भी चुटी ,
न जाने कैसे ये रिस्ता टुटा। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: "मेरा बचपन"

"मेरा बचपन"
 गाँव में वह बचपन मेरा ,
यादो का संसार था। 
खुशियो हर पल ही था ,
बड़े का प्यार ही प्यार था। 
बचपन के दोस्त भी मजेदार थे ,
अनोखा राज से भरे थे। 
बारिश में आँगन में खेला कप्ते थे। 
कागज के नाव बनाकर,
बाँध बनाकर छोटे तलाब बनाते थे 
गाँव में वह बचपन मेरा ,
खुशियों से भरा हुआ था। 
कवि: अमित कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 

गुरुवार, 13 नवंबर 2025

कविता: "अँधेरे में जलता दीपक"

"अँधेरे में जलता दीपक"
 अब गुमसुम हो रही गालियाँ ,
अब पराए हो रहे अपने लोग। 
अब कठिनाई की मेधा चली आई मंडराते हुए। 
अँधेरी रातो की चाँदनी भी छीन ली गई। 
अब बस उम्मीद की दीपक जल रहा मुझमे। 
सोचकर भी नहीं मिल सकता वह पल ,
जो कभी सबसे कीमती हुआ करते थी। 
यह जमी भी मुझसे रूत चुकी है ,
यह मुस्कान भी मुझसे चीन चुकी। 
सब पल भर की सोच में ,
अपने मन की इच्छा को बदल लेता हूँ। 
अब गुमसुम हो रही गालियाँ। 
अब पराए हो रहे अपने लोग। 
कवि: अमित कुमार, कक्षा: th,
अपना घर 

बुधवार, 12 नवंबर 2025

कविता: "माँ का आँचल"

"माँ का आँचल"
 कभी पीछे छिप करता था ,
कभी डरकर भाग जाया करता था ,
भीड़ देखकर माँ के आँचल में छिप जाता था ,
थोड़ी सी उलझन में और डर  की गुर्राहट से ,
शर्माते हुए इन लोगों से ,
डरकर भाग जाया, करता था। 
करीब होता था तो माँ के आँचल में छिप जाता था ,
अब बदल गया, बड़े हुआ तो बड़ा चढाव आया। 
रहो में गिरे, तो माँ ने उठाया ,
जब मैं रुठा तब माँ ने मनाया। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

मंगलवार, 11 नवंबर 2025

कविता: "ठंडी"

"ठंडी"
 फिर से वही दिन आएंगे ,
ठंडी वाले कपड़े निकाले जाएंगे। 
कम्बल का फिर से उपयोग होगा ,
और रजाई फिर से ओढे जाएगे ,
हो सकेगा तो शायद हप्ते में रोज नहाएंगे,
फिर से वही दिन आएंगे। 
ना चाहते हुआ भी स्कूल जाएंगे ,
और शायद जाकर भी डॉट खाएंगे। 
इतना होने बाद भी रोज नहाएंगे ,
बाकी के बच्चे भी बत्तीसी दिखाएंगे 
हम भी उसी में मिल जाएंगे। 
और रोज की तरह वही दिन आएगे। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: "सफलता की कुंजी"

कविता: "सफलता की कुंजी"
 ये खुशनसीब किस्मत है हमारी,
टीम टिमाते बहुत सारे तारे ,
चमकते है जिंदगी में जैसे सारे। 
कही दो पल दुख सहने तो रहने दो ,
कही दो पल की ख़ुशी तो रहने दो। 
अरे! रब ने ही भेजा था मुझे अपने कष्ट सहने को ,
कभी पेड़ो की छाव की तो कभी भटकते  राहो में ,
उस समय चेहरे पर मुश्कान थी ,
पर दिलो में जिंदगी की ही नुकसान थी। 
कवि: अजय कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

शनिवार, 8 नवंबर 2025

कविता: "सर्दी का मौशम"

"सर्दी का मौशम"
 ये मौशम है सर्दी का,
रजाई काम करता है है वर्दी का। 
इस मौशम में कुछ भी पहनो ,
सब कुछ कम पड़  जाता है ,
चाहे जैकेट कम हो या रजाई, कंम्बल ,
फिर भी ये मौशम है ठंडी का ,
थोड़ा भी महसूस न होता गर्मी,
चाहे जितना छोड़कर रखो रजाई कंम्बल ,
क्यूंकि ये मौशम है सर्दी का। 
ये मौशम बहुत सुहाना लगता है। 
कवि: अप्तार हुसैन, कक्षा: 8th,
अपना घर। 

गुरुवार, 6 नवंबर 2025

कविता: "खुशियो की लहर"

 "खुशियो  की लहर"  
जगमगा रहे है गलियाँ और चौराहें,
हर तरफ है झालर के जाले ,
टिमटिमाते रहे है सारे। 
जैसे टिमटिमाते जुगुनू सारे दिए में है खुशियाँ बाटते ,
आसमान में दिखे रंग बिरंगे तारे ,
बस प्रदूषाण है बहुत सारे। 
खुशियाँ तो मनाए आपने ,
बस बात नहीं राखी मन में आपने ,
सारे होश तो खो दिए ,
आँखी पटाखे जला दिए हजार सारे। 
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर 

कविता: "अँधेरी दुनिया"

 "अँधेरी दुनिया"
 रोशनी से भरपूर इस दुनिया में,
एक अँधेरी दुनियाँ भी मौजूद है। 
जहाँ इंसान ही नहीं जानवर भी मजबूर है ,
दाने - दाने को मोहताज है लोग ,
भूखों हालत परेशान है लोग।,
गरीबी की कीरण पहुँचकर ,
आशा जगाती है उनकी, जिसकी न कोई पहचान है। 
बस अँधेरे से लड़कर जीतना ,
और गरीबी में रहकर, खुश रहने ,
ये बड़ा मुशिकल और आसान है। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर 

बुधवार, 5 नवंबर 2025

हमारा "Kho - Kho मैच"

हमारा "Kho - Kho मैच"
 चारो तरफ से सीटी की आवाज थी, 
कुछ टीमों थी और वही सक्ले तैयार थी,
जूनून सभी  के अंदर भरा हुआ था ,
बस उसको निकलने की बारी थी सबको जितना था, 
बस यही सोच में आए थे, 
हार जाएंगे, वह तो बाद की बात है ,
आ गए तो कोशिश करके जाएंगे। 
सफलता उसी को मिल रही है ,
जो बल, बुद्धि का प्रयोग कर रहा है ,
बाकी तो बुद्धिमान लोग तो थे ही, 
और उसी में हम लोगो का मैच चल रहा था। 
पर उनसे ज्यादा हम लोग ने कर दिया ,
हम ने भी कर दी इतनी मेहनत ,
की हो गया उनकी मेहनत फर्जी। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: "माँ की ममता"


"माँ की ममता"
आज भी याद आती है मुझे,
वो मेरी माँ का ममता। 
जब भी मैं डरता था ,
तो वो मुझे साहस दिलाती थी ,
माँ आज तेरी बहुत याद आती है। 
 दूर रह के भी पास रहती हो ,
बार - बार मेरे सपनो में तू ही आती है। 
वैसे तो रोज तेरी याद सताती है ,
तेरी ही हर पल याद आती है ,
माँ तेरी कमी का ही अहसास होता है। 
दिल ये मेरा अभी  बच्चा है तेरी याद में बार बार रोता ,
माँ तेरी बहुत याद आती है। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

रविवार, 2 नवंबर 2025

कवि: "आज का दिन"

"आज का दिन"   
आज का दिन बीता नहीं कुछ खास, 
शाम के 8 बजे हो रहा है मुझे अहसास। 
न जाने क्यों लाग रहा मुझे  बुखार,
सर दर्द हो रहा है जुखाम भी है,
सिर्फ बिस्तर पर जाना बाकी है,
दिमाग भी खराब हो गया है न जाने कहा सो गया है। 
सिगनल  बंद हो गया है आना,
फिर भी बढ़ाना है देश की शान। 
 आज का दिन बीता नहीं कुछ खास,
शाम के 8 बजे हो रहा है मुझे अहसास। 
कवि: रवि कुमार, कक्षा: 4th,
अपना घर।