" मिलेगी तेरी हर मंजिल "
हंसकर जीना है तो
उदासी छोड़ दे ,
हर मोड़ पर लड़ना है तो
बाजुओं को जोड़ दें |
हठ करने की आदत सी है जो
यूँ ही रूठना छोड़ दें |
आग की तरह छलकना है तो
अपनी राह को चुन लें |
हँसकर जीना है तो
उदासीपन छोड़ दे |
स्वतन्त्र जहाँ में रहना है तो
हर वॉर को ठोक दे |
मिलेगी तेरी हर मंजिल
अगर तू कछुवा के तरह चले दे |
कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर
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