" लगाए बैठा था आस "
मुझे अपने आप को जो कहना था,
वो मैंने यूँ ही कह दिया |
बस मुझे दिखता रहा वो छाया,
जिसको मैं न ढूँढ पाया |
अपने लिए कुछ खास,
अभी भी मेरे अंदर है |
कुछ नया करने की प्यास,
पर मैं लगाए बैठा था आस |
जिसपर मुझे खुद ही नहीं था विश्वास |
कवि : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो प्रयागराज के रहने वाले हैं समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | समीर एक संगीतकार भी हैं | समीर को बाँटना बहुत अच्छा लगता है |
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