" ओस "
हम लोग नहीं जानते,
की भगवन की क्या मर्जी |
कभी हिलाया तो कभी कपकपाए,
क्या सर्दी है क्या सर्दी है |
क्या किया जाए इससे निपटने के लिए,
नहीं मन करता पानी से सटने में |
आग जलने को हम मजबूर हैं,
सर्दी इतना क्यों मगरूर है |
आग भी इसमें बेअसर है,
जिधर भी देखो कोहरा आधर है |
बात एक दम ठोस है,
घांसों पर पड़ी रहती ओस है |
कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता अखिलेश के द्वारा लिखी गई है जो की एक बहुत अच्छे कविकार हैं | अखिलेश को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | अखिलेश पढ़लिखकर एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं और उसके लिखे बहुत मेहनत कर रहे हैं |
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