" बेजान सी सर्दी "
ओस की बूंदें बता रहीं हैं,
यूँ ही सर्दी में हमें सता रही हैं |
हथकड़ियाँ पहनाकर बंद कर दी है,
क्या बताऊँ बाहर इतनी सर्दी है |
ठण्ड हवा सांसों में समाए,
घर में ही रहें बाहर कहीं न जाए |
सर्द में सभी को सताती है,
सूरज को भी अपनी बातों में फसाती है |
यह कितनी बेजान सी नरमी है,
क्या कहूं इसी का नाम सर्दी है |
कवि : प्रांजुल कुमार ,कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं |
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