" बचपन के दिन "
वे लम्हें जो बचपन के चले गए,
वह उम्र जो घूमने हुए गुजर गए |
पता हमें नहीं किसी चीज की बात,
तब भी मजा आता था सभी के साथ |
खेलना कूदना लगा रहता,
खेल खेल में लड़ता रहता |
वह सोचने का मौका नहीं मिलता,
फिर भी बेवजह हर चीज के लिए
बन टन कर जिद्दी रहता |
कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है | विक्रम कुछ न कुछ सिखने के लिए तत्पर रहतें हैं | पढ़ाई हमेशा सीखते हैं और सभी को बाँटते हैं | विक्रम को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक हैं |
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