" कुछ है खास "
देखो इन हँसी रातों को,
क्या इनमें कुछ है खास |
जिन पर मुझे अभी भी,
नहीं हो रहा है विश्वास |
मुझे क्यों हो रहा है
कुछ अलग सा अहसास |
इनमें कुछ तो कुछ है नया
जिसका जादू मुझ पर है छाया |
फिर भी मैनें कुछ न पाया
सिर्फ समय को है खाया |
कवि : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ हैं | समीर पढ़ लिखकर एक अच्छे इंसान के साथ एक अच्छे संगीतकार बनना चाहते हैं | समीर एक बहुत सी जिज्ञासु लड़का हैं |
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