" बूँद "
देखो क्या क्या लाई बूँद,
पत्तों से फिर टपकती बूँद |
मोती जैसी चमकती बूँद,
जैसे कोई इंद्रधनुष |
सीधे आकर जमीं पर,
गिरती थकी हुई सी लगती है |
यही चाहते हैं हैं हम सारे
कल फिर से बरसों बून्द |
कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 5th , अपनाघर
कवि परिचय : यह कविता सुल्तान के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | सुल्तान को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है | सुल्तान ने इस कविता का शीर्षक " बूँद " दिया है | सुल्तान पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं और और अच्छे बनने की कोशिश करते हैं |
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