रविवार, 28 मार्च 2010

बाल विवाह आज भी जारी है

बचपन खोया सिंदूर के रंगों में ........

खेल खिलौने पढना लिखना,
सब छूटा इस बचपन
में ....
धमा चौकड़ी उछल कूद,
खोया सिंदूर के रंगों में....

हुई पराई सब अनजाना,
देखो मेरे इन आँखों में....
घर के चौके घर के चूल्हे,
खेल बने अब आँगन में ......
तुमसे बस इतना मै पुछू,
ये सजा दिया क्यों बचपन में

क्या लौटा पाओगे तुम ,
मुझको मेरे बचपन में....?????

महेश कुमार, अपना घर





4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत बढ़िया।

kamlakar Mishra Smriti Sansthan ने कहा…

mahesh bhai namaskar,kab khatam hogo yah sab aab to desh bhi azad huy 63 sal beet gaye hai......thankas a lot

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

चर्चा मंच पर
प्यारे-प्यारे, मस्त नज़ारे!
शीर्षक के अंतर्गत
इस पोस्ट की चर्चा की गई है!

--
संपादक : सरस पायस

बेनामी ने कहा…

वास्तव में बच्चों का बचपन कहां है ? सिंदूर में गुम न हुआ तो आजकल किताबों और भविष्य की उलझन को सुलझाते-२ बचपन क्या जवानी भी खो रही है । महेश कुमार जी आपकी कविता मन को छू गई...seema sachdev