मंगलवार, 9 मार्च 2010

कविता : पृथ्वी

पृथ्वी

पानी की बढ़ती मात्रा
ले डूबेगी पृथ्वी को
पिघल रही बर्फ पर्वतों से
और बढ रहा है पानी
कट रहें पेड़ कम बचे हैं जंगल
बढ रहे मकान बढ रहीं हैं फैक्ट्रियां
काम करो ये फैक्ट्री
कम होगा ये धुंआ
बंद करो ये पेड़ काटना
बर्फ पिघलना होगी कम
बचेगी नष्ट होने से पृथ्वी
और बचेगा आदमी
मिलेगा जीवन फिर से
और बचेगी ये पृथ्वी
लेखक :सोनू कुमार
कक्षा :
अपना घर

1 टिप्पणी:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

सुन्दर,
बहुत बढ़िया बच्चे!
'प्रथ्वी' नहीं 'पृथ्वी'
पता है न 'ऋ' की मात्रा :)