शुक्रवार, 12 मार्च 2010

कविता कोयल


कोयल

कोयल हूँ मैं कोयल हूँ ,
काली रंग की मैं कोयल हूँ....
कौवा को बेकूप बनती हूँ,
और कौवा बेकूप बन जाता हैं ....
मैं अपना अंडा कौवा के,
घोसले में रख देती हूँ....
और कौवा मेरा अंडा सेता हैं,
और मेरे बच्चे को पाल लेता हैं....
जब मेरा बच्चा थोड़ा सा बड़ा हो जाता हैं,
तब कौवा उसे अपनी चीजे कुछ न देता....
अपने घोसले से भगा देता हैं,
और फिर कौवा पस्ताता हैं....
और कोयल गीत गाती हैं,
फिर कोयल उड़ जाती हैं....
लेखक हंसराज सिंह कक्षा ६ अपना घर कानपुर

1 टिप्पणी:

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