" सुबह की वह पहली किरण "
सुबह की वह पहली किरण,
लगता है नया सवेरा लाएगी |
आयी मंडराती हुई आस पास,
जब मैं बैठा खिड़की के पास |
वह मुझे एक बात समझा गई,
वह बात मुझको समझ में आई |
याद के सहारे जिया जा सकता है,
हर सुख दुःख को सहा जा सकता है |
अमावस्य के रात के अँधेरे में भी,
उजयाले के आस लगाए बैठा था |
की जुगनू जैसा चमकता हुआ
आएगी एक उम्मीद की किरण |
सुबह की वह पहली किरण
सोच सोचकर सहम गया,
बीतों दिनों को देखकर वहम गया |
हर असंभव को संभव,
हर नामुनकिन को मुनकिन
बनाया जा सकता है |
सुबह की वह पहली किरण,
लगता है नया सवेरा लाएगी |
नाम : अखिलेश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर
कवि परिचय : अखिलेश कुमार बिहार राज्य के रहने वाले हैं अपनाघर में रहकर पढ़ाई कर रहें हैं | पढ़ाई में बहुत अच्छा करते हैं | इसके आलावा कवितायेँ लिखना और फूटबाल खेलना इन सभी में रूचि रखते हैं |
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