" चाँद"
बैठ बिस्तर पर चाँद निहारता,
उसकी किरणों को आँखों में भरता |
अंधियारों को दूर है करता,
सभी में उम्मीदें है भरता |
गोल मटोल है इसका आकर,
देखा इसको तो आया मन में विचार |
क्यों न इसको समझा जाए,
इसके बारे में उत्तर पाए |
शीतल करता है मन को ये,
चमकार भी न जलता है ये | |
नाम : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 8th , अपनाघर
कवि परिचय : यह है प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ से कानपुर के अपनाघर में रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे है | दो तीन सैलून में अच्छी कवितायेँ लिखने लगे हैं | पढाई के साथ -साथ खेल और अन्य गतिविधियों में भी बहुत अच्छे हैं |
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