शीर्षक :- लापरवाही
हर मोड़ मुकाम पर मिलते है राही।
सडको पर अपनी मर्जी से, चलने में नहीं कोई लापरवाही।।
ठेके पर बैठकर पीने में, या चौपाल पर सही।
पीकर एरोप्लेन चलाने में, नहीं कोई लापरवाही।।
बिना हेलमेट के गाड़ी चलाने में।
ट्रैफिक पुलिस के रोकने में।।
उनसे बचने के लिए घूंस देना सही।
इसमें नहीं कोई लापरवाही।।
बच्चे हो या बूढ़े।
अमीर हो या गरीब सही।।
उनको गाली देने और सुनने में कोई ऐतराज नहीं।
ये कविता जिसने लिखी याद नहीं।।
कवि ने शीर्षक दिया ही नहीं।
पर इसमें कवि की नहीं कोई लापरवाही।।
हर मोड़ मुकाम पर मिलते है राही।
सडको पर अपनी मर्जी से, चलने में नहीं कोई लापरवाही।।
ठेके पर बैठकर पीने में, या चौपाल पर सही।
पीकर एरोप्लेन चलाने में, नहीं कोई लापरवाही।।
बिना हेलमेट के गाड़ी चलाने में।
ट्रैफिक पुलिस के रोकने में।।
उनसे बचने के लिए घूंस देना सही।
इसमें नहीं कोई लापरवाही।।
बच्चे हो या बूढ़े।
अमीर हो या गरीब सही।।
उनको गाली देने और सुनने में कोई ऐतराज नहीं।
ये कविता जिसने लिखी याद नहीं।।
कवि ने शीर्षक दिया ही नहीं।
पर इसमें कवि की नहीं कोई लापरवाही।।
कवि:- आशीष कुमार
कक्षा:- 10
अपना घर
2 टिप्पणियां:
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