सोमवार, 15 नवंबर 2010

कविता : कैसे होगा जीवन पार

कैसे होगा जीवन पार
कैसे होगा अब जीवन पार ,
सबके ऊपर है कुछ पैसे का भर....
इस पैसे का भार चुकाने के लिए,
कोई चोरी करता हैं ,और कोई मरता हैं.....
कैसे होगा अब जीवन पार,
इस जीवन को चलाने के लिए....
कोई कमाता हैं, और कोई गुलामी करता हैं,
कैसे होगा अब जीवन पार.....
लेख़क : ज्ञान
कक्षा :
अपना घर , कानपुर

1 टिप्पणी:

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

कितनी सही बात... अच्छी कविता