एक थी होशियार डंडी,
उसका नाम था सिखंडी.....
पेड़ के ऊपर से गिरी,
पानी में चलते थी मारी- मारी.....
जगह- जगह शैर करने निकल पड़ीं,
पानी में सब को देखे खडी -खडी.....
उसने एक आवाज सुनी,
कोयल गाना गा रही थी......
उसका मन बहला रही थी,
डंडी उसकी तारीफ करना चाह रही थी......
पर कुछ कह न पाई ,
आगे चल कर उसने एक गिलहरी को देखा......
उसके शरीर में खिची थी तीन रेखा,
आगे चली तो उसको मिला एक मेढक......
उसके शरीर में थी एक रेखा,
वह बैठकर कविता लिख रहा था......
डंडी को सुना रहा था,
मन्द- मन्द मुस्का रहा था.....
पर डंडी मुस्का न पाई,
और आगे बढ़ गई.....
उसने एक गुलाब का फूल देखा ,
जो सुगन्ध दे रहा था.....
हवा में झूल रहा रहा,
मन्द- मन्द मुस्का रहा रहा था....
एक थी होशियार डंडी ,
उसका नाम था सिखंडी......
लेख़क: मुकेश कुमार
कक्षा : ९
अपना घर , कानपुर
कक्षा : ९
अपना घर , कानपुर
2 टिप्पणियां:
मजेदार लगी कविता.....
kaphi acchi kavita hai
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