सपनों में परियाँ
एक समय की बात है। बैजूपुर गाँव में जान नाम का एक लड़का रहता था। वह प्रतिदिन स्कूल जाया करता था। उसको परियों की कहानी सुनने में बहुत पसंद थीं। वह जब भी सपना देखता,उसे सपने में परियाँ जरुर दिखतीं। उसका एक दोस्त बन्दर था,जिसका नाम जनारदन था। उन दोनों में बड़ी दोस्ती थी। एक दिन जान स्कूल से वापस आया और आते ही बिस्तर पर जाकर सो गया। जान सोते हुये यह सपना देखने लगा की वह प्रथ्वी से बाहर,अपने परिवार से दूर,अपने दोस्त जनारदन के साथ वह परियों के देश में पहुँच गया है। वह और उसका दोस्त एक उडनतश्तरी में खड़े हैं। और उनके आस पास कई परियाँ उड़ रही हैं। अब वह दोनों अपने हाथों से चाँद-तारों को छू सकते थे। तभी जान को भूख लगी। उसने जनारदन से पूछा की क्या तुमको भूख लगी है?हाँ मुझे भी लगी है। जनारदन ने कहा। तभी वहां पर एक परी उनके लिए ढेर सारी मिठाइयां,फल और खाने की चीजें कई प्रकार की लेकर आयी। उन दोनों ने जैसे खाना प्रारम्भ किया ही था,कि जान की माँ ने जान को सोते हुये से जगा दिया। जान जैसे ही जगा,उसने देखा कि मैं तोअपने बिस्तर पर बैठा हूं। उसका दोस्त जनारदन बाहर बैठा उसके साथ खेलने का इन्तजार कर रहा है। उसकी माँ ने कहा कि जाओ हाथ-मुंह धुल लो और अपने दोस्त के साथ खेलो जाकर,वह तुम्हारा इन्तजार कर रहा है। जान अपनी माँ से कहने लगा कि माँ अगर आप थोड़ी देर और न उठाती तो मैं अपने दोस्त के साथ परियों के देश में अच्छा-अच्छा खाना खा लेता,मगर आपने उठा दिया। माँ ने कहा अब सपने देखना छोड़ो और जाकर अपने दोस्त के साथ खेलो जाकर। ठीक है माँ। इतना कहकर जान अपने बिस्तर से उठकर,हाथ मुंह धुलकर अपने दोस्त जनारदन के साथ खेलने चला गया।लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर
कक्षा :8
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4 टिप्पणियां:
अच्छी काहानी लिखी है आपने
आपको सपरिवार दिपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएँ
मेरी पहली लघु कहानी पढ़ने के लिये आप सरोवर पर सादर आमंत्रित हैं
दिपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएँ
अच्छी काहानी ......दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें
मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था | वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी | उनके साथ होने पर मुझे शर्मिन्दगी महसूस होती थी | एक बार वो मेरे स्कूल आई और मै फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ | वो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है ? अगले दिन स्कूल में सबने मेरा बहुत मजाक उड़ाया |
मैं चाहता था मेरी माँ इस दुनिया से गायब हो जाये | मैंने उनसे कहा, 'माँ तुम्हारी दूसरी आँख क्यों नहीं है? तुम्हारी वजह से हर कोई मेरा मजाक उड़ाता है | तुम मर क्यों नहीं जाती ?'माँ ने कुछ नहीं कहा | पर, मैंने उसी पलतय कर लिया कि बड़ा होकर सफल आदमी बनूँगा ताकि मुझे अपनी एक आँख वाली माँ और इस गरीबी से छुटकारा मिल जाये |
उसके बाद मैंने म्हणत से पढाई की | माँको छोड़कर बड़े शहर आ गया | यूनिविर्सिटी की डिग्री ली | शादी की| अपना घर ख़रीदा | बच्चे हुए | और मै सफल व्यक्ति बन गया | मुझे अपना नया जीवन इसलिए भी पसंद था क्योंकि यहाँ माँ से जुडी कोई भी याद नहीं थी | मेरीखुशियाँ दिन-ब-दिन बड़ी हो रही थी, तभीअचानक मैंने कुछ ऐसा देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी | सामने मेरी माँखड़ी थी, आज भी अपनी एक आँख के साथ | मुझे लगा मेरी कि मेरी पूरी दुनिया फिर से बिखर रही है | मैंने उनसे पूछा, 'आप कौन हो? मै आपको नहीं जानता | यहाँआने कि हिम्मत कैसे हुई? तुरंत मेरे घर से बाहर निकल जाओ |' और माँ ने जवाब दिया, 'माफ़ करना, लगता है गलत पते पर आगयी हूँ |' वो चली गयी और मै यह सोचकर खुश हो गया कि उन्होंने मुझे पहचाना नहीं |
एक दिन स्कूल री-यूनियन की चिट्ठी मेरे घर पहुची और मैं अपने पुराने शहरपहुँच गया | पता नहीं मन में क्या आया कि मैं अपने पुराने घर चला गया | वहां माँ जमीन मर मृत पड़ी थी | मेरे आँख सेएक बूँद आंसू तक नहीं गिरा | उनके हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा था... वो मेरे नाम उनकी पहली और आखिरी चिट्ठी थी |
उन्होंने लिखा था :
मेरे बेटे...
मुझे लगता है मैंने अपनी जिंदगी जी लीहै | मै अब तुम्हारे घर कभी नहीं आउंगी... पर क्या यह आशा करना कि तुम कभी-कभार मुझसे मिलने आ जाओ... गलत है ?मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है | मुझे माफ़ करना कि मेरी एक आँख कि वजह से तुम्हे पूरी जिंदगी शर्मिन्दगी झेलनीपड़ी | जब तुम छोटे थे, तो एक दुर्घटना में तुम्हारी एक आँख चली गयी थी | एक माँ के रूप में मैं यह नहीं देख सकती थी कि तुम एक आँख के साथ बड़े हो, इसीलिए मैंने अपनी एक आँख तुम्हे दे दी | मुझे इस बात का गर्व था कि मेरा बेटा मेरी उस आँख कि मदद से पूरी दुनिया के नए आयाम देख पा रहा है | मेरी तो पूरी दुनिया ही तुमसे है |
चिट्ठी पढ़ कर मेरी दुनिया बिखर गयी | और मैं उसके लिए पहली बार रोया जिसने अपनी जिंदगी मेरे नाम कर दी... मेरी माँ
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