हमने है एक कविता बनाया ,
जिसका तुका ना मिला पाया ।
चटनी के बिन समोसा खाया ,
सब्जी के बिन रोटी खाया ।
रोड पर जाकर गाड़ी चलाया ,
आसमान में जहाज उड़ाया।
कच्चे - कच्चे ईंटों को बनाया ,
भट्ठों में घोंड़ो को चलाया ।
रात को अच्छा खाना खाया ,
बेड पर जाकर मैं फिर सोया ।
आखें खोला तो अपने को बिस्तर पर पाया,
पता चला कि मुझको रात को सपना आया ।
लेखक : आदित्य पाण्डेय, कक्षा : ७, अपना घर
2 टिप्पणियां:
बहुत ही मनोरंजक..सुन्दर और मन भावन!!
jeete raho
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