एक तालाब पर बैठा बगुला॥
अपना ध्यान पानी लगाये।
मछली उछले उसको लपकूं॥
ये उसके मन में विचार आए।
तभी एक केकड़ा पहुचाँ॥
झट उ़सने बगुले को दबोचा।
तब बगुले को समझ में आया॥
अ़ब न करूँगा कभी शिकार।
तब केकड़े ने उसको छोड़ा॥
छूटते ही बगुले ने भर ली उड़ान।
अपना ध्यान पानी लगाये।
मछली उछले उसको लपकूं॥
ये उसके मन में विचार आए।
तभी एक केकड़ा पहुचाँ॥
झट उ़सने बगुले को दबोचा।
तब बगुले को समझ में आया॥
अ़ब न करूँगा कभी शिकार।
तब केकड़े ने उसको छोड़ा॥
छूटते ही बगुले ने भर ली उड़ान।
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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