" एक ऐसे मोड़ पर "
जब मैं खड़ा था एक ऐसे मोड़ पर,
मेरी जिंदगी ले गई उस छोर पर |
दिखाए मुझे कई किनारे उस छोर पर,
पर मुझे ही नहीं था भरोसा अपनी सोच पर |
मेरी जिंदगी ने मुझे वहाँ पर टोका,
पर मुझे डर था कहीं मैं खा न जाऊ धोखा |
मैंने वहाँ पर भी कुछ ठहर कर सोचा,
मुझे लगा इसमें है कुछ न कुछ लोचा |
मुझे लगने लगा अब अकेलापन,
जब मैं खड़ा था एक ऐसे मोड़ पर |
कवि : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
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