सोमवार, 1 अप्रैल 2019

कविता : सुहानी सी सुबह

" सुहानी सी सुबह "

सुहानी सी सुबह खिली है,
लगता है धरती सूरज से मिली है |
उसके एक एक कण ऊर्जा से भरे है,
ऐसा लगता जैसे सागर में मोती बिखरे  है |
सुनहरी सुबह प्रकति बात करती है,
पता नहीं प्रकति क्यों इतना  मचलती है |
चहचहाती चिड़ियाँ खुली हुई खिड़कियाँ,
बंधन से टूटी सारी वो बेड़ियाँ |
लहलहाते फसल , मन में हलचल,
उम्मीद रहती है अच्छा हो कल |

                                                                                                 कवि : प्रांजुल कुमार।, कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह हैं प्रांजुल जिन्होंने यह कविता लिखी है, जो की छत्तीसगढ़ के निवासी है और अभी अपना घर संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | पढ़लिखकर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं | गणित में बहुत रूचि है और उसको विषय के तौर पर नहीं पढ़ते बल्कि मज़े लेकर पढ़ते हैं |

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